आरिफ आलम, अहमदाबाद: देश के 11 वें राष्ट्रपति रहे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की आज जयंती है. महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम का पूरा नाम अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम है.
उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वर में हुआ था. मिसाइल मैन के नाम से मशहूर कलाम जितने महान वैज्ञानिक थे.
उतने ही शांत व्यक्ति थे गुजरात के अहमदाबाद शहर से उन्हे खास लगाव था.
सरखेज रोजा की लेते थे मुलाकात
अहमदाबाद अपने शानदार पौराणिक इमारत और भव्य इतिहास की वजह से वर्ल्ड सिटी हेरीजेट में अपना नाम स्थापित कर चुका है.
इस शहर का नाम जिस शासक के नाम पर पड़ा है उन्होंने अपने शासन काल में 1440-1443 के दरमियान अहमदाबाद के सरखेज में जो उस दौर में एक छोटा सा गाँव हुआ करता था.
वहां पर मुस्लीम सूफी संत शेख अहमद खट्टू गंज बक्श की याद में एक मकबरा बनवाया था. उसे आज लोग सरखेज रोजा के नाम से जानते हैं.
सरखेज रोजा इतना भव्य है कि इसमें आने वाला सैलानी इसकी शानदार खुबसूरती और नक्काशियों का दिवाना हो जाता है. कलाम साहब जब भी गुजरात के दौरे पर आते थे तब सरखेज रोजा की जरुर मुलाकात लेते थे.
सरखेज रोजा में लगी उनकी कई तस्वीर आज भी इस बात की गवाही देती हैं कि कलाम साहब को इस जगह से कितनी मुहब्बत थी.
विधवा घर का किया था उद्घाटन
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 2002 में गुजरात आए थे उस दौरान अहमदाबाद के जुहापुरा इलाके में मौजूद इकलौते विधवा घर का उद्घाटन किया था.
इसलिए हर साल इस दिन के मौके पर पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन ए पी जे अब्दुल कलाम को याद कर यहां पर रहने वाली महिलाएं उनकी मगफिरत के लिए दुवा मांगती हैं.
कलाम साहब को याद कर यहां पर रहने वाली औरतों का कहना है कि अगर यह विधवा घर उनका आसरा नहीं बनता तो उन्हे दर-दर की ठोकर खानी पड़ती.
विधवा घर में रहने वाली औरतों ने कहा कि हिन्दुस्तान में ऐसी सोच रखने वाले लोगों की आज भी जरुरत महसूस की जा रही है.
वहीं विधवा घर की जिम्मेदारी संभालने वाले अफजल खान दिल्लीवाला ने कहा कि हर उस अच्छे इंसान को याद किया जाता है जिन्होंने अपनी जिंदगी दूसरों के नाम कुर्बान कर दी हो, कलाम साहब ने सिर्फ हिन्दुस्तान के लिए नहीं बल्कि गरीबों के लिए भी अपनी जिंदगी कुर्बान कर दिया था.
इसीलिए हर साल उनकी जयंती के मौके पर विधवा घर में रहने वाली औरतें उनके लिए कुर्आन ख्वानी करती हैं.
कई एवार्ड से किया गया सम्मानित
कलाम एक महान इंसान थे जिन्हें भारत रत्न (1997 में), पद्म विभूषण (1990), पद्म भूषण (1981), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार (1997), रामानुजन अवार्ड (2000), किंग्स चार्ल्स द्वितीय मेडल (2007), इंटरनेशनल्स वोन करमान विंग्स अवार्ड (2009), हूवर मेडल (2009) जैसे कई एवार्ड से सम्मानित किया गया. कलाम एक ऐसे महान शख्सियत थे जो एवार्ड पाने से नहीं बल्कि एवार्ड उनके पास आने में गौरवान्वित महसूस करता था.
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कलाम साहब का सफर
दरअसल कलाम साबह एक पायलट बनना चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना पूरा ना हो सका उसके बाद साल 1962 कलाम पहली बार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र पहुंचे.
कलाम प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे जब भारत ने अपना स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया. कलाम ने स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया. जिसके चलते अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक बनीं.
सन 1992 से 1999 तक कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे. जब वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दोबारा न्यूक्लियर टेस्ट किया तब कलाम ने बड़ी भूमिका निभाई.
कलाम की अगुवाई में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल, टैंकभेदी मिसाइल और रिएंट्री एक्सपेरिमेंट लॉन्च वेहिकल (रेक्स) पर खूब काम हुआ. पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग नाम के मिसाइलों का निर्माण हुआ.
कैसे बने मिसाइल मैन
साल 1985 महीना सितंबर. त्रिशूल का परिक्षण. फरवरी 1988 में पृथ्वी और मई 1989 में अग्नि का परीक्षण किया गया.
इसके बाद 1998 में रूस के साथ मिलकर भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया और ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई. ब्रह्मोस धरती, आसमान और समुद्र कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है.
इस सफलता के बाद कलाम को मिसाइल मैन की ख्याति मिली. इस महान व्यक्ती ने साइंस के फिल्ड में ऐसा शानदार काम किया जिससे पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन हो गया.
देश के लिए कुछ और करने का सपना देखने वाले कलान साहब ने 27 जुलाई 2015 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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