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…मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था

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मशहूर शायर राहत इंदौरी का आज दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. मंगलवार सुबह उन्होंने ट्वीट करके जानकारी दी थी कि उनकी रिपोर्ट कोरना पॉज़िटिव आई है. वहीं अब खबरें आ रही हैं कि उनका निधन हो गया है. राहत इंदौरी 70 साल के थे.

राहत इंदौरी मशहूर शायर थे. मुशायरे के अलावा उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों के लिए गाने लिखे.

वह अपने खास तरीके से शेर पढ़ने के लिए भी जाने जाते थे.

1 जनवरी 1950 को हुआ था जन्म

1 जनवरी 1950 का दिन भी दो चीजों की वजह से बेहद खास है. एक इसी दिन आधिकारिक तौर पर होल्कर रियासत ने भारत में विलाय होने वाले पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. वहीं इस तीरीख के खास होने की दूसरी वजह यह है कि 1 जनवरी 1950 को राहत साहब का जन्म हुआ था. वह दिन इतबार का था और इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ये 1369 हिजरी थी और तारीक 12 रबी उल अव्वल थी. इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब पैदा हुए.

बचपन से था लिखने का शौक

राहत साहब को पढ़ने लिखने का शौक़ बचपन से ही रहा. पहला मुशायरा देवास में पढ़ा था.

डॉ. राहत इंदौरी के शेर हर लफ्ज़ के साथ मोहब्बत की नई शुरुआत करते हैं. यही नहीं वो अपनी ग़ज़लों के ज़रिए हस्तक्षेप भी करते नजर आए. व्यवस्था को आइना भी दिखाए हैं. आइए उनकी कुछ चुनिंदा नज्म और शेर का लुत्फ उठाएं…

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‘किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है

ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था

मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी माँग में सिन्दूर भरने वाला था’

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‘बुलाती है मगर जाने का नईं
वो दुनिया है उधर जाने का नईं’

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‘बनके एक हादसा बाजार में आ जाएगा
जो नहीं होगा वह अखबार में आ जाएग
चोर, उचक्कों की करो कद्र कि मालूम नहीं
कौन कब कौन सी सरकार में आ जाएगा’

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‘अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है.
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है.
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है.
मैं जानता हूं के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है.
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है.
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है.
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है’

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