पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का कहना है कि भारत में इस वक्त तीन-तरफा खतरा मंडरा रहा है – सामाजिक सौहार्द का विघटन, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य समस्या और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘देश को सिर्फ अपने शब्दों से नहीं, कृत्यों से भरोसा दिलाना ही होगा कि वह हमारे सामने मौजूद खतरों से परिचित हैं और उन्हें देश को आश्वस्त करना होगा वह इससे पार पाने में हमारी सहायता कर सकते हैं.’ मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अपने आलेख में देश की मौजूदा स्थिति को ‘भयावह’ करार दिया.
डॉ. मनमोहन सिंह ने लिखा, “बहुत भारी मन से मैं यह लिख रहा हूं. मैं खतरों के इस जमघट से बेहद चिंतित हूं, जो न सिर्फ भारत की आत्मा को तोड़ सकते हैं, बल्कि आर्थिक और लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में हमारी वैश्विक छवि को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.” मालूम हो कि मनमोहन सिंह साल 2004 से 2014 तक 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे.
दिल्ली के कुछ हिस्सों में पिछले सप्ताह हुई हिंसा का ज़िक्र करते हुए उन्होंनेने कहा कि ‘हमारे समाज के उद्दंड वर्ग, जिसमें राजनेता भी शामिल थे,’ द्वारा साम्प्रदायिक तनाव को हवा दी गई, और धार्मिक असहिष्णुता की आग को भड़काया गया. कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी संस्थाओं ने नागरिकों और न्याय संस्थानों की रक्षा के अपने धर्म को छोड़ दिया और ‘मीडिया ने भी हमें निराश किया. रोक की कोई व्यवस्था नहीं, इसलिए सामाजिक तनाव की आग तेज़ी से देशभर में फैल रही है और हमारे देश की आत्मा को तार-तार कर देने का खतरा पेश कर रही है… इसे वही लोग बुझा सकते हैं, जिन्होंने इसे भड़काया है.”
डॉ. मनमोहन सिंह ने लिखा, “छटपटाती अर्थव्यवस्था के दौर में इस तरह की सामाजिक अशांति के असर से मंदी को गति ही मिलेगी… आर्थिक विकास का आधार होता है सामाजिक सद्भाव, और इस समय वही खतरे में है… टैक्स दरों को कितना भी बदल दिया जाए, कॉरपोरेट वर्ग को कितनी भी सहूलियतें दी जाएं, भारतीय तथा विदेशी कंपनियां यहां निवेश नहीं करेंगी, जब तक हिंसा के अचानक भड़क उठने का खतरा बना रहेगा.”
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