लॉकडाउन ने आम जन जीवन को अस्त व्यस्त जरूर कर दिया लेकिन यह तालाबंदी कुछ मायनों में वरदान साबित हुई है. प्रकृति के लिए लॉकडाउन वरदान साबित हुई और प्रदूषण का स्तर भी बेहद कम हो गया है. वहीं कोरोना संकट के दौरान कुछ चीजों की डिमांड बढ़ी है. इसी में से एक है पारले-जी बिस्कुट. कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान अप्रैल और मई में पारले-जी बिस्कुट की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की है.
लॉकडाउन के दौरान पारले-जी बिस्कुट की इतनी अधिक बिक्री हुई है कि पिछले 82 सालों का रिकॉर्ड टूट गया है. महज 5 रुपए में मिलने वाला पारले-जी बिस्कुट का पैकेट सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने वाले प्रवासियों के लिए भी खूब मददगार साबित हुआ.
पारले प्रोडक्ट्स के एक वरिष्ठ अधिकारी मयंक शाह ने इसके कारण पर प्रकाश डालते हुए बताया कि महामारी के दौरान खाद्य राहत पैकेट बांटने वाले एनजीओ और सरकारी एजेंसियों ने भी पारले-जी बिस्कुट को तरजीह दी क्योंकि यह किफायती है और दो रुपये में भी मिलता है. साथ में यह ग्लूकोज का अच्छा स्रोत है.
बाजार में लौटी रौनक
लॉकडाउन के दौरान बाजार में पारले की हिस्सेदारी में 4.5 से पांच फीसदी का इजाफा हुआ. उन्होंने बताया कि बीते 30-40 साल में हमने ऐसी वृद्धि नहीं देखी है.उन्होंने बताया कि पहले आई सुनामी और भूकंप जैसे संकटों के दौरान भी पारले-जी की बिक्री बढ़ी थी. मालूम हो है कि कोरोना की महामारी के कारण एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में कारों से लेकर कपड़ों तक हर चीज की बिक्री में गिरावट आ रही है, जिससे कंपनियों को उत्पादन पर लगाम लगाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसे समय में पारले-जी बिस्कुट की रिकॉर्ड बिक्री अपने आप में खास है.
1938 से रहा है फेवरेट ब्रांड
पारले-जी 1938 से ही लोगों के बीच एक फेवरेट ब्रांड रहा है. लॉकडाउन के बीच इसने अब तक के इतिहास में सबसे अधिक बिस्कुट बेचने का रिकॉर्ड बनाया है. हालांकि, पारले कंपनी ने सेल्स नंबर तो नहीं बताए, लेकिन ये जरूर कहा कि मार्च, अप्रैल और मई पिछले 8 दशकों में उसके सबसे अच्छे महीने रहे हैं. पारले प्रोडक्ट्स के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने कहा कि कंपनी का कुल मार्केट शेयर करीब 5 फीसदी बढ़ा है और इसमें से 80-90 फीसदी ग्रोथ पारले-जी की सेल से हुई है.
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