आज 23 मार्च है, यानी शहीद दिवस. आज ही के दिन भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु फांसी की सजा दी गई थी जिसे हम शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं. अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचार से सबसे पहले भगत सिंह ने लौहार में सांडर्स की गोली मार कर हत्या कर दी. उसके बाद ‘पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट बिल’ के विरोध में भगत सिंह ने सेंट्रल असेम्बली में बम फेंका था. हालांकि, उनका मकसद सिर्फ अंग्रेजों तक अपनी आवाज पहुंचाना था कि किसी की हत्याल करना नहीं. इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
आज पूरे देश में उन शहीदों को याद किया जा रहा है. हालांकि, कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन के हालात हैं और ऐसे में कोई सार्वजनिक आयोजन नहीं हो रहे लेकिन लोग सोशल मीडिया में इन शहीदों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. लोग विपदा की घड़ी में एकबार फिर देश के वीरों को याद कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि अदृथ्य दुश्मन से देश को संकट से उबारे.
कहा जाता है कि इन तीनों की मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश की आशंका से डरी हुई अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च की रात्रि को ही इन क्रांतिकारियों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे इनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.
प्रधानमंत्री ने किया याद
उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन शहीदों को नमन किया है. पीएम मोदी ने ट्विटर के जरिये भारत के सपूतों को याद किया. उन्होंने ट्वीट किया, शहीद दिवस पर मां भारती के महान सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन. देश के लिए उनका बलिदान कृतज्ञ राष्ट्र सदा याद रखेगा. जय हिंद.
शहीद दिवस पर मां भारती के महान सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन। देश के लिए उनका बलिदान कृतज्ञ राष्ट्र सदा याद रखेगा। जय हिंद!
— Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2020
भगत सिंह से जुड़ी खास बातें
भगत सिंह सिर्फ आछ साल की उम्र में आजादी के दीवाने हो गए थो और 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था. उन्हें जब उनके पिता ने शादी के लिए कहा तो भगत सिंह का जवाब था कि ‘अगर मेरी शादी गुलाम भारत में हुई तो मेरी दुल्हन मौत होगी. वहीं भगत सिंह ने जेल में रहते हुए 116 दिनों का उपवास किया था लेकिन इस दौरान उन्होंने अपने सारे काम खुद किए.
सुखदेव से जुड़ी खास बातें
जहां तक सुखदेव की बात है तो जब फांसी की सजा मिली तो वो पर डरने की बजाय खुश थे. फांसी से कुछ दिन पहले महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि “लाहौर षडयंत्र मामले के तीन कैदी को मौत की सजा सुनाई गई है और उन्होंने देश में सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त की है जो अब तक किसी क्रांतिकारी पार्टी को प्राप्त नहीं है. वास्तव में, देश को उनके वक्तव्यों से बदलाव के रूप में उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना लाभ उन्हें फांसी देने से प्राप्त होगा. सुखदेव ने ही भगत सिंह को असेम्बली हॉल में बम फेंकने के लिए राजी किया था.
राजगुरू से जुड़ी खास बातें
राजगुरू का पूरा नाम शिवराम हरी राजगुरु था और उनका जन्म पुणे के निकट खेड़ में हुआ था. राजगुरू महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए अहिंसक सिविल अवज्ञा आंदोलन में विश्वास नहीं करते थे. उनका मानना था कि उत्पीड़न के खिलाफ क्रूरता ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक प्रभावी था, इसलिए वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हुए थे, जिनका लक्ष्य भारत को किसी भी आवश्यक माध्यम से ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था. उन्होंने भारत की जनता को अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए इच्छुक नवयुवकों को इस क्रांतिकारी संगठन के साथ हाथ मिलाने का आग्रह किया. राजगुरु शिवाजी और उनकी गुरिल्ला युद्ध पद्धति से काफी प्रभावित थे.
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