अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट बीते दिनों एक याचिका पर सुनवाई करते हुए साबरमती नदी में गंदा और जहरीला पानी छोड़ने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ सख्त नाराजगी का इजहार किया था. इसके अलावा कोर्ट ने गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अहमदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया था कि नदी में प्रदूषित पानी छोड़ने वालों की एक सूची बनाई जानी. मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि 1948 में साबरमती नदी का पानी पीने योग्य था. लेकिन अब इसके पानी से किसान अपनी खेत की सिंचाई भी नहीं कर सकते.
कोर्ट के इस सख्त निर्देश के बाद अहमदाबाद नगर निगम की टीम एक्शन मोड में आ गई है. नगर निगम की टीम ने नदी में प्रदूषित पानी को छोड़ने वाली इकाइयों का पता लगाने का निर्देश जारी किया है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि प्रदूषण को कम करने के लिए नदी में ट्रीटमेंट करने के बाद पानी छोड़ा जाए, एएमसी आयुक्त को इस निर्देश का पालन कराना होगा. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को यह भी निर्देश दिया कि नदी में प्रदूषण कम करने और अच्छे परिणाम के लिए वह नगर निगम की टीम का हर मुमकिन मदद करें.
उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए एएमसी को उन औद्योगिक इकाइयों की पहचान करने का भी निर्देश दिया जो अवैध रूप से मेगा पाइपलाइन से जुड़ी हुई हैं और प्रदूषित पानी को नदी में छोड़ रही हैं, उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए. सभी एसटीपी को वैज्ञानिक आधार पर चलाएं और प्रदूषित पानी को उचित ट्रीटमेंट के बाद ही नदी में बहाएं. इस मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर को होगी.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि एएमसी द्वारा चलाए जा रहे एसटीपी में स्थित लैब द्वारा प्रदूषित पानी और उसके टेस्टिंग रिकॉर्ड के आंकड़ों से छेड़छाड़ किया जाता है यह बेहद गंभीर मामला है. एएमसी ऐसी लैब के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे. इसके अलावा अकुशलता से कार्य करने वाले लैब टेक्नीशियन का ठेका निरस्त कर योग्य लैब को ठेका दिया जाए.
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