देश में कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन लागू होने के बाद लाखों प्रवासी मजदूर बदहाली के दौर में पहुंच गए हैं. इस बीच शुक्रवार को प्रवासी मजदूरों की बदहाली के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के रोजगार और पुनर्वास को लेकर केंद्र सरकार से सीधे सवाल पूछे. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को 15 दिन का वक्त दिया है.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि अब तक करीब एक करोड़ प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचा दिया गया है. बसों के जरिये 41 लाख तो ट्रेन से 57 लाख मजदूरों को उनके घर भेजा गया है. देशभर में तीन जून तक 4270 श्रमिक ट्रेनें चलाई गई हैं. केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हमने राज्यों से पूछा है कि कितने मजदूरों को शिफ्ट करने की ज़रूरत है और कितने ट्रेनें चलाई जानी चाहिए. राज्यों ने हमें यह जानकारी दे दी है और उसके आधार पर चार्ट बनाया गया है. 171 ट्रेन और चलाए जाने की जरूरत है.
इस पर कोर्ट ने पूछा, आपके चार्ट के मुताबिक क्या महाराष्ट्र ने एक ही ट्रेन की मांग की है? तो सॉलीसीटर जनरल ने कहा- हां, 802 ट्रेन पहले ही महाराष्ट्र से चला चुके हैं. फिर कोर्ट ने सवाल पूछा- यानी हम ये माने कि कोई और शख्श महाराष्ट्र से नहीं आना चाहता. इस पर सॉलीसीटर जनरल बोले- जी, राज्य सरकार ने हमें यही बताया है. राज्यों से मांग आने पर हम 24 घंटे में ट्रेन उपलब्ध करा रहे हैं.
जस्टिस भूषण ने कहा – हम केंद्र और राज्यो को मजदूरों को वापस भेजने के लिए 15 दिन का वक़्त दे रहे हैं. सभी राज्यों को बताना होगा कि वो मजदूरों को रोजगार और बाकी राहत पहुंचाने के लिए क्या कर रहे हैं. प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन बहुत ज़रूरी है. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि रजिस्ट्रेशन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा. आधे से ज़्यादा मजदूर वापस जाने के लिए अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं कर पा रहे.
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