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#Column: ताली और थाली बजाने की नीति की वजह से गुजरात गंभीर परिस्थिति में

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शंकरसिंह वाघेला: किसी भी राज्य सरकार को सार्वजनिक कार्यों और बड़ी परियोजनाओं के लिए कर्ज लेना होता है. लेकिन कर्ज बढ़े नहीं इसे भी राज्य सरकार ही ध्यान में रखती. लेकिन गुजरात सरकार का कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है. कोरोना वायरस महामारी की वजह से उद्योग-धंधा बंद होने के बाद अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता हो गई है. भविष्य की आर्थिक संकटों से सरकार को आगाह करना अधिकारियों का काम है. लेकिन बिना रीढ़ की हड्डी वाले अधिकारियों ने कभी भी सरकार को चेतावनी या सलाह नहीं दी. ऐसे बिना रीढ़ की हड्डी वाले अधिकारियों ने गुजरात का कर्ज और लोगों की दुर्दशा को बढ़ाया है.

मौजूदा सरकार ने महात्मा मंदिर जैसी कई अनुत्पादक परियोजनाओं पर पैसे खर्च किए हैं. बेतरतीब योजना और अनुत्पादक खर्च, व्यक्तिगत वाहवाही हासिल करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने वाली सरकार को अधिकारियों ने कभी रोका नहीं. यह पैसा लोगों की भलाई में खर्च होता तो परिस्थिति बिल्कुल अलग होती.

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गुजरात वर्षों से औद्योगिक विकास में आगे है. एक आदमी या सरकार ने गुजरात को औद्योगिक क्षेत्र में पहले या दूसरे पायदान पर लाया हो इसकी घोषणा करना गलत है. व्यक्तिगत वाहवाही के लिए ताली और थाली बजाने की नीति के कारण गुजरात इस समय गंभीर स्थिति में पहुंच गया है. रोजगार के लिए गुजरात आए श्रमिक केंद्र और राज्य सरकारों को कोस रहे हैं और घर जा रहे हैं. यहां के आर्थिक विकास में मदद करने वाले मजदूर तालाबंदी के कारण रोते-रोते बेसहारा होकर घर चले गए. अगर ये प्रवासी मजदूर वापस नहीं आए तो गुजरात का तथाकथित विकास रुक जाएगा.

विकास किसी राजनीतिक दल की मेहरबानी से नहीं होता. विकास एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. व्यापारी साहस गुजरात के खून में है. दशकों और सदियों पहले गुजराती लोगों ने लंबी तटरेखा का लाभ उठाकर अफ्रीका और मध्य पूर्व में व्यापार करने के लिए स्थाई हो गए थे. प्रसिद्धि हासिल की. लेकिन इस सरकार ने आज ऐसे गुजरात को आर्थिक रूप से गरीब बना दिया है. मौजूदा गुजरात सरकार वैभव और आडंबर में जी रही है.

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गुजरात में 50 से 60 लाख शिक्षित बेरोजगार हैं. तालाबंदी की वजह से जो बेरोजगार होंगे उनकी संख्या अलग है. माता-पिता लाखों की लागत से अपने बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं लेकिन सरकार रोजगार के पर्याप्त अवसर प्रदान करने में विफल रही है. गुजरात इन दिनों दिशाहीन है. उत्पादन के लिए गुजरात के पास जरुरी श्रमिक भी नहीं हैं. सरकार को मनमाने निर्णय लेने के बजाय, श्रम कानूनों में बदलाव करके उत्पादन को अधिकतम करने की दिशा में काम करने की जरूरत है. नहीं तो राज्य आर्थिक रूप दिन-प्रतिदिन डूबता जाएगा.