बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में माना था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कान्टैक्ट (Skin to Skin Contact) के छूना यौन अपराध नहीं है. POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) के तहत अपराध न मानने के हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है.
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट (Skin to Skin Contact) के छूना POCSO एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा बल्कि IPC की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध माना जाएगा.
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बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा स्किन टू स्किन (Skin to Skin Contact) फैसले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी मांगी है. बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में CJI ने कहा कि हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी तलब करेंगे.
क्या था मामला
बता दें कि अटॉर्नी जनरल ने अदालत में इस मामले को उठाया था. इस फैसले में आरोपी को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था, जो पॉक्सो के तहत आरोपी था, सिर्फ इस आधार पर, उसका बच्चे के साथा सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने सवाल उठाते हुए इसे खतरनाक बताया था. इसके बाद उच्चतम न्यायलय ने इस पर रोक लगाते हुए आरोपी को बरी करने पर भी रोक लगा दी है.
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन अपराध का कृत्य माने जाने के लिए ‘‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क (Skin to Skin Contact) होना’’ जरूरी है. जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है. जस्टिस गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले (Skin to Skin Contact) में संशोधन करते हुए ये आदेश दिया. सत्र अदालत ने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन साल जेल की सजा सुनाई थी.