सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) और एयर इंडिया से यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बीच की सीट बुक करने की अनुमति देने पर सवाल उठाया क्योंकि यह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के खिलाफ है और इससे इंसान की जान को खतरा हो सकता है. SC ने कहा कि सरकार को एयरलाइनों के स्वास्थ्य की तुलना में नागरिकों के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बीच वाली सीट खाली रखी जाए या नहीं? चीफ़ जस्टिस अरविंद बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने एयर इंडिया को दस दिनों के लिए बीच वाली सीट पर बैठाने की इजाज़त दे दी है.
कोर्ट ने आगे कहा कि 10 दिनों के बाद एयर इंडिया को बीच वाली सीट खाली रखने को लेकर दिए गए बंबई हाई कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर दिए गए इस अहम फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कॉमन सेंस की बात है कि सोशल डिस्टेंसिंग महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने कहा, “डीजीसीए और एयर इंडिया अगर ज़रूरी लगे तो नियमों में किसी किस्म का बदलाव करने के लिए स्वतंत्र हैं.”
22 मई को बंबई हाई कोर्ट ने कहा था कि एयर इंडिया की अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बीच वाली सीट खाली रखी जानी चाहिए और नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) इस पर निर्देश जारी करे.
डीजीसीए ने अपने दिशा निर्देश में ये कहा था कि दो सीटों के बीच एक सीट खाली रखी जानी चाहिए. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले पर बंबई हाई कोर्ट को फिर से फ़ैसला करने के लिए कहेगी.
मालूम हो कि भारत सरकार ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत दूसरे देशों में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस ला रही है. पहले चरण के तहत, ब्रिटेन से 2,000 से ज्यादा लोगों को लाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले को फिर से बॉम्बे हाईकोर्ट को भेजा और कहा कि वो सभी पक्षों को सुनकर इस मामले में जनहित को ध्यान में रखकर जल्द फैसला करे कि पहली नजर में वायरस को फैलने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका के लंबित रहने के दौरान DGCA और एयर इंडिया नियमों में उचित बदलाव कर सकते हैं.
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