कोरोना वायरस लॉकडाउन की सबसे अधिक मार गरीब और प्रवासी मजदूरों पर पड़ रही है. काम-धंधे बंद होने कारण एक ओर इनके पास जहां भरपेट खाने तक के पैसे नहीं बचे हैं. वहीं इनके दुधमुंहे बच्चे भी अब पानी पीकर दिन काट रहे हैं.
पैदल ही पलायन करने को मजबूर इन मजूदरों को भुखमरी से बचाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें भले ही लाख दावें करें, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है. सरकारों को इन गरीब प्रवासी मजदूरों को राशन देने के साथ ही इनके दुधमुंहे नौनिहालों के लिए भी दूध का कोई इंतजाम करना चाहिए था, लेकिन इस पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. इसके चलते ये बेबस और लाचार छोटे-छोटे बच्चे अब पानी के सहारे ही अपना पेट भर रहे हैं.
दिल्ली के रानी खेड़ा से अपने परिवार के साथ बिहार के रोहतास जिला जा रहे सतेंद्र सिंह ने बताया कि लॉकडाउन होने के चलते फैक्ट्री मालिक ने उसे सैलरी नहीं दी है. इसके कारण उसके पास अब खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं. किराया न देने पर मकान मालिक ने भी कमरा खाली कर दिया है. यहां रहकर भूखे मरने की नौबत आ गई है, इसलिए तंग आकर अब वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपने गांव वापस जा रहा है.
वहीं, सत्येंद्र की पत्नी ने कहा कि बच्चों के लिए मां का दूध सबसे जरूरी होता है, लेकिन अब उसे ही भरपेट खाना नहीं मिलने के कारण उसका दूध भी कम उतर रहा है. इसके कारण वह अपनी 3 माह बच्ची को पानी पिलाकर ही जिंदा रखे हुए है. उनके पास बाजार से दूध खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं. 3 माह की छोटी बच्ची और कुछ खा भी नहीं सकती है.
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