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ये हैं वह पांच जज जो सुनाने वाले हैं राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर बड़ा फैसला

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अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. 17 नवबंर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई निवृत होने वाले हैं ऐसे में उम्मीद जताई जा रही थी कि इस मामले को लेकर फैसला 17 से पहले कर दिया जाएगा. आज देश के सबसे बड़े और संवेदनशील मामले का फैसला सुनाने वाले हैं ऐसे में पांच बेंच जजों के बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं. आईये जानते हैं कौन कौन जज शामिल हैं इस बेंच में. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए नजीर

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई
दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और लॉ की डिग्री लेने के बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरु की और 2010 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में आए. जिसके बाद पिछले साल उन्हे दीपक मिश्रा के बाद भारत का चीफ जस्टिस बना दिया गया.असम के डिब्रूगढ़ के रहने वाले रंजन गोगोई के पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं हालांकि उनका कार्यकाल बहुत लम्बे समय के लिए नहीं था.

इन फैसलों से चर्चा में आए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई

सौम्या रेप केस में केरल हाई कोर्ट ने अपराधी को मौत की सज़ा सुनाई थी 2011 में. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में गोगोई, प्रफुल्ल पन्त, और उदय उमेश ललित की बेंच ने ये सजा खारिज कर अपराधी गोविन्दस्वामी को उम्रकैद की सजा सुनाई. इस पर बहुत बहस हुई.

2016 में कन्हैया कुमार पर पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर हुए हमले को लेकर एडवोकेट कामिनी जायसवाल ने पेटीशन डाली. पेटीशन में मांग ये थी कि इस हमले को लेकर जांच बिठाई जाए. 2018 में गोगोई की बेंच ने इसे खारिज कर दिया.

17 नवम्बर को रिटायर होंगे, उसके पहले सबरीमाला रीव्यू, राफेल का मुद्दा, आरटीआई के दायरे में चीफ जस्टिस को लाने जैसे मुद्दों पर फैसला सुनाने वाले हैं.

जस्टिस शरद अरविन्द बोबड़े

महाराष्ट्र के नागपुर यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल कर 1978 में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र में शामिल हुए. अपर न्यायाधीश के रूप में 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ का हिस्सा बने. एसए बोबड़े मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रह चुके हैं. इनके पिता अरविंद बोबड़े महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रह चुके हैं.

इन फैसलों से चर्चा में आए जस्टिस बोबड़े

जस्टिस बोबड़े उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने आदेश दिया कि आधार कार्ड न रखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को सरकारी फायदों से वंचित नहीं किया जा सकता.

मई, 2018 में जब कर्नाटक में चुनाव हुए और किसी को बहुमत नहीं मिला, तो राज्यपाल ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए बुलाया. कांग्रेस इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची. रात 2 बजे से सुनवाई शुरू हुई और फैसला येदियुरप्पा के पक्ष में आया. येदियुरप्पा के पक्ष में फैसला देने वाली बेंच में शामिल थे जस्टिस बोबड़े.

जस्टिस धनञ्जय यशवंत चंद्रचूड़
दिल्ली यूनिवर्सिटी से LLB करने के बाद हारवर्ड लॉ स्कूल से LLB करने गए. 1998 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें सीनियर एडवोकेट का पद दिया. इसी के साथ वो एडिशनल सोलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया भी रहे. 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने. और 2013 तक रहे. उसके बाद तीन साल तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे. जस्टिस चंद्रचूड़ को उनकी टू द पॉइंट टिप्पणियों के लिए जाना जाता है. इनके पिता यशवंत चंद्रचूड़ देश के सबसे ज्यादा लंबे समय तक पद पर रहने वाले चीफ जस्टिस थे.

इन फैसलों से चर्चा में आए जस्टिस चंद्रचूड़

2018 में नवतेज जौहर वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया केस में जिस बेंच ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था, उस बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी मौजूद थे. उन्होंने धारा 377 को समय के हिसाब से भ्रमित और गुलामी वाला बताया था जो बराबरी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन, और निजता के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है.

2018 में ही केरल के हदिया विवाह मामले में सुनवाई करते हुए उसके धर्म और जीवनसाथी के चुनाव को सही बताते हुए फैसला दिया था. हदिया ने अपना धर्म बदलकर मुस्लिम शफीन जहान से शादी की थी. इसके बाद उसके घरवालों ने आरोप लगाया था कि हदिया का ब्रेनवॉश किया गया है. चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक बालिग़ का उसकी शादी या धर्म को लेकर लिया जाने वाला फैसला उसके निजी अधिकारों के तहत आता है.

जस्टिस अशोक भूषण
1979 में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल का हिस्सा बने और इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. 2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के परमानेंट जज बन गए. 2014 में केरल हाई कोर्ट के जज बने. उसके बाद वहां के चीफ जस्टिस बने. जस्टिस अशोक भूषण ने RTI एक्ट में FIR के कागज़ात देने के बाबत दिए गए जजमेंट में अहम भूमिका निभाई थी.

2017 में इनकी मौजूदगी वाली डिविजन बेंच ने एक पेटीशन को खारिज किया, जिसमें सिविल सर्विसेज एग्जाम में शारीरिक रूप से अक्षम कैंडिडेट्स के लिए कोशिशों की संख्या सात से बढ़ाकर दस करने की मांग की गई थी. जस्टिस भूषण ने कहा था कि फिजिकली हैंडीकैप्ड अपने आप में एक कैटेगरी है.

2015 में इनकी मौजूदगी वाली केरल हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने आदेश दिया कि पुलिस को FIR की कॉपी लगानी होगी. अगर उसकी मांग RTI में की जाती है तो. इसमें छूट तभी मिलेगी अगर संबंधित अथॉरिटी ये निर्णय ले कि FIR को RTI एक्ट से छूट मिली हुई है.

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर
मंगलुरु के लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री लेने के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट, बेंगलुरु में प्रैक्टिस शुरू की. वहां के एडिशनल जज के पद पर नियुक्ति हुई. उसके बाद परमानेंट जज बने. जस्टिस नज़ीर तीन तलाक पर सुनवाई कर रही बेंच में मौजूद थे. कर्नाटक हाई कोर्ट से सीधे उन्हें 2017 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया. वो किसी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने बिना सुप्रीम कोर्ट जाने वाले तीसरे जज थे.

बड़े फ़ैसले कौन से थे?

ट्रिपल तलाक मामले में इनकी बेंच ने ट्रिपल तलाक (तलाक-ऐ-बिद्दत) को गैरकानूनी घोषित करने का फैसला दिया. पांच जजों की इस बेंच में दो जजों ने ट्रिपल तलाक को बनाए रखने के पक्ष में निर्णय दिया, और तीन ने विपक्ष में. नज़ीर पक्ष में फैसला देने वाले दो जजों में से एक थे.

दिसंबर 2017 . ये उन 9 जजों की बेंच का हिस्सा थे जिस बेंच ने कहा था कि निजता का अधिकार यानी Right to privacy नागरिक का एक मौलिक अधिकार है.