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रेप के मामलों में पहले पायदान पर UP, संसद में बोली सरकार, 31 दिसंबर तक ढाई लाख मामले कोर्ट में लंबित

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सरकार ने बुधवार (4 मार्च) को कहा कि पिछले साल दिसंबर तक देश भर में बलात्कार और प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (POCSO) अधिनियम से संबंधित 2.4 लाख से अधिक मामले कोर्ट में लंबित हैं. कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा लोकसभा में एक लिखित उत्तर के अनुसार, सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 66,994 रेप के मामले लंबित हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर 21,691 मामले महाराष्ट्र में और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल में 20,511 मामले लंबित हैं.

एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में जदयू सांसद राजीव रंजन (ललन) सिंह के प्रश्न के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया, “हाईकोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, रेप और पॉक्सो एक्ट से संबंधित लंबित मामलों की संख्या 31 दिसंबर 2019 तक 2,44,001 है.”

आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2018 के अनुसार, देश भर में 1,023 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की स्थापना के लिए एक योजना को अंतिम रूप दिया गया था. इसका उद्देशय एक तय समय की भीतर पॉक्सो एक्ट, 2012 और रेप से संबंधित लंबित मामलों का त्वरित जांच और निष्पादन करना था. अब तक, 2019-20 के दौरान 27 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में 649 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना के लिए 99.43 करोड़ की राशि जारी की जा चुकी है.

मंत्रालय ने कहा, “हाईकोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार 31 जनवरी 2020 तक 195 फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन हो चुका है. हालांकि यह आश्चर्यजनक बात है कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य जहां सबसे ज्यादा संख्या में रेप के मामले लंबित हैं, वहां एक भी फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन नहीं हुआ है. प्रस्ताव के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अधिकतम 218, महाराष्ट्र में 138 और पश्चिम बंगाल में 123 फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन हो सकता है.

आंध्र प्रदेश में 18, तेलंगाना में 36, अंडमान और निकोबार द्वीप में 01, अरुणाचल प्रदेश में 03, असम में 27, बिहार में 54, चंडीगढ़ में 01, छत्तीसगढ़ में 15, गोवा में 02, गुजरात में 35, हरियाणा में 16, हिमाचल प्रदेश में 06, जम्मू-कश्मीर में 04, झारखंड में 22, कर्नाटक में 31, केरल में 56, मध्य प्रदेश में 67, मणिपुर में 02, मेघालय में 05, मिजोरम में 03, नागालैंड में 01, दिल्ली एनसीटी में 16, ओडिशा में 45, पंजाब में 12, राजस्थान में 45, तमिलनाडु में 14, त्रिपुरा में 03 और उत्तराखंड में 04 फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन हो सकता है. कानून मंत्री ने बताया कि प्रत्येक फास्ट ट्रैक कोर्ट में एक साल में 165 मामलों का निष्पादन हो सकता है.