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जब मोदी जी ने वकालत की थी – “मीडिया भारत में लोकतंत्र को बचा सकता है”

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2013

संपादकीय: साल 1997 की शुरुआत की बात है, शंकरसिंह वाघेला भाजपा से अलग हो गए थे और गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए थे. उन्होंने राष्ट्रीय जनता पार्टी (RJP) के रूप में अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई और उत्तर गुजरात क्षेत्र के राधनपुर से उपचुनाव लड़े. कई लोग इसे गुजरात में कराए गए सबसे उपद्रवी उप-चुनावों में से एक मानते हैं.
निर्वाचन क्षेत्र में कई स्थानों पर वाघेला और भाजपा के समर्थकों के बीच झड़पें हुईं. तत्कालीन महासचिव (संगठन) नरेंद्र मोदी बीजेपी के लिए उप-चुनाव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे क्योंकि माना जाता था कि उन्हीं के कारण शंकरसिंह ने भगवा पार्टी को छोड़ दिया था.

प्रमुख गुजराती समाचार पत्र उप-चुनाव में शंकरसिंह द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हिंसा और अन्य रणनीति पर रिपोर्टिंग कर रहे थे. भाजपा कार्यकर्ताओं पर राजद के लोगों द्वारा कई जगहों पर हमले किए गए थे. उस समय मोदी ने राधनपुर के सर्किट हाउस इलाके में अपना डेरा डाला रखा था. एक दिन फिर से हिंसक झड़प के बाद मोदी ने मीडिया को फोन करके बुलाया और उनसे वाघेला के गलत कार्यों को उजागर करने का अनुरोध किया. उन्होंने घोषणा किया, “यह मीडिया है जो देश में लोकतंत्र की रक्षा कर सकता है.”

उधर वाघेला समर्थकों ने मीडिया को डराने के लिए राधनपुर में अखबारों की प्रतियां जलाने सहित कई हथकंडे अपनाए. उस समय मीडिया को चुप कराने के लिए अपनाए जा रहे ऐसे किसी भी हथकंडे को लेकर भाजपा असहाय थी.
ठीक 23 साल बाद बीजेपी के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी पर आरोप है कि वे मीडिया को डराने के लिए मजबूत हथकंडे अपना रहे हैं. अपने समय की एक छोटी सी वेबसाइट के मालिक पर राजद्रोह का केस उस रिपोर्ट के लिए दर्ज किया गया है जिसमें कहा गया है कि रूपाणी की जगह मनसुख मंडाविया को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. फिर भी भाजपा के किसी भी सदस्य ने रूपाणी को यह बताने की हिम्मत नहीं की कि उन्हें इस तरह की रणनीति से बचना चाहिए. भाजपा को यह अच्छी तरह से याद रखना चाहिए कि देश में कांग्रेस का पतन उसके मीडिया के खिलाफ कठोर रणनीति के उपयोग के साथ शुरू हुई थी.
दुखद बात यह है कि राजनीतिक दलों ने हमेशा मीडिया के खिलाफ कानून का दुरुपयोग किया है लेकिन कोई मीडिया संगठन नहीं है जो सरकार के साथ इस मुद्दे को उठा सके. आधिकारिक तौर पर गुजरात मीडिया क्लब है लेकिन मीडिया पर हमले के महत्वपूर्ण मुद्दे पर वह भी चुप है. इस मसले पर उनकी तरफ से कोई बयान नहीं आया है.
लेकिन मुद्दा यह है कि भाजपा सरकारें उस विश्वास को बनाए रखेंगी जो मोदी ने दिखाया था जब उन्होंने कहा था “मीडिया भारत में लोकतंत्र की रक्षा कर सकता है.”