नागरिका संशोधन कानून को लेकर होने वाले विरोध प्रदर्शन में होने वाली हिंसा के बाद अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सख्त कार्रवाई करने का मन बना चुके हैं. सरकार जहां मामले में शामिल लोगों से मुआवजा वसूलने का ऐलान किया है वहीं पिछड़े और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज़ उठाने वाली और उनकी परेशानियों से सरकार को अवगत कराने वाली पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर पाबंदी लगाने की तैयारी में है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ राज्यभर में हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसक वारदातों को अंजाम देने में इस संगठन की संलिप्तता का पता चला है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार का होम डिपार्टमेंट राज्य में पीएफआई को प्रतिबंधित करने का मसौदा तैयार कर रहा है. प्रदेश में प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के कई मामलों में पीएफआई नेताओं के खिलाफ सबूत पाए गए हैं. अब तक पीएफआई के लगभग 20 सदस्यों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें पीएफआई की राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के प्रदेश अध्यक्ष नूर हसन भी शामिल है. लखनऊ पुलिस ने पीएफआई के प्रदेश संयोजक वसीम अहमद समेत अन्य पदाधिकारियों को भी शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी करने के मामले में गिरफ्तार किया था.
दूसरी ओर पीएफआई के केंद्रीय नेतृत्व का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार संगठन को झूठे आरोप में फंसा रही है है. पीएफआई ने कहा है कि लखनऊ पुलिस द्वारा गिरफ्तार अहमद की आगजनी या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में कोई भूमिका नहीं थी. पीएफआई के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘ये गिरफ्तारियां इन जन आंदोलनों को दबाने और उन्हें आतंकवादी घटना के तौर पर पेश करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा हैं.